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अरब सागर में भारत की सबसे बड़ी तैनाती - Defence Reporter

इज़रायल-हमास संघर्ष में अब जो मोड़ आया है उसने पूरी दुनिया को परेशान कर दिया है। ईरान समर्थित हूती आतंकवादियों ने लाल सागर से गुज़रने वाले व्यापारिक जहाज़ों पर हमले तेज़ कर दिए हैं। इससे भारत भी चिंतित है क्योंकि लाल सागर से गुज़रकर ही भारत आने वाले व्यापारिक जहाज़ अरब सागर में पहुंचते हैं। भारत की ज़रूरत का 80 प्रतिशत ईंधन और 95 प्रतिशत व्यापारिक माल इसी रास्ते से आता-जाता है। 23 दिसंबर को भारत आ रहे व्यापारिक जहाज़ चेन प्लूटो और अगले दिन व्यापारिक जहाज़ साई बाबा पर ड्रोन से हमले हुए। दोनों ही जहाज़ों पर कच्चा तेल लदा था। ये स्थिति भारत के लिए बहुत परेशान करने वाली है क्योंकि अगर अरब  सागर- लाल सागर का रास्ता असुरक्षित हुआ तो जहाज़ों को अफ्रीका के नीचे से यानि केप ऑफ गुड होप से होते हुए आना पड़ेगा। इससे सफर का समय दो हफ्ते तक और लागत कई गुना बढ़ जाएगी। 

भारतीय नौसेना ने दिसंबर के दूसरे हफ्ते से ही अरब सागर में अपनी तैनाती बढ़ानी शुरू कर दी थी। दिसंबर तक अरब सागर में नौसेना के पांच जंगी जहाज़ तैनात कर दिए गए थे और जनवरी के दूसरे हफ्ते तक इनकी तादाद 12 हो चुकी है। इनमें से 5 बड़े जंगी जहाज़ यानि डिस्ट्रॉयर्स हैं इनके नाम INS कोलकाता, INS चेन्नई, INS कोच्चि, INS मारमुगाओ और INS विशाखापट्टनम हैं। ये सभी 450 किमी दूर तक मार करने वाली ब्रह्मोस मिसाइलों और 5 किमी तक मार करने वाली समुद्री तोपों से लैस हैं। इनमें ध्रुव और चेतक हेलीकॉप्टर तैनात हैं। हर जहाज़ पर मरीन कमांडोज़ की टीमें मौजूद हैं जो तेज़ नावों से जाकर किसी भी जहाज़ पर हमला करने के लिए तैयार हैं। इन बड़े जहाज़ों के अलावा छोटे फ्रिगेट्स, मिसाइल बोट्स और गश्त करने वाले जहाज़ भी अरब सागर में तैनात हैं। टोही एयरक्राफ्ट P 8(I) और प्रिडेटर ड्रोन अरब सागर के ऊपर चक्कर लगा रहे हैं ताकि किसी भी तरह की हरक़त की सूचना तुरंत दी जा सके। भारतीय नौसेना ने इतनी बड़ी तैनाती 1999 के कारगिल युद्ध के बाद पहली बार की है। 

हूती विद्रोहियों के ठिकानों पर 11 जनवरी को अमेरिकी और ब्रिटिश हमलों के बाद हूती विद्रोहियों ने भारी क़ीमत चुकाने की धमकी दी है। लाल सागर और अरब सागर में लगातार बढ़ रहे तनाव से पूरी दुनिया में व्यापार पर बहुत गंभीर खतरा पैदा हो गया है। भारत भी इससे चिंतित है और भारतीय नौसेना लगातार अरब सागर में अपनी ताक़त मज़बूत कर रही है। अरब सागर में तैनात भारतीय नौसेना के जंगी जहाज़ों की तादाद अब 12 से ज्यादा हो गई है इनमें 5 सबसे बड़े जंगी जहाज़ डिस्ट्रॉयर हैं।

भारतीय नौसेना ने दिसंबर से ही अरब सागर में अपनी मौजूदगी बढ़ानी शुरू कर दी थी। 5 जनवरी को व्यापारिक जहाज़ लीला नॉरफॉक को समुद्री डाकुओं से छुड़ाने के लिए डिस्ट्रायर INS चेन्नई को भेजा गया था जिसे हूती संकट गहराने के बाद ही अरब सागर में तैनात किया गया था। INS चेन्नई के अलावा इसी क्षमता के INS कोलकाता, INS कोच्चि, INS मारमुगाओ और INS विशाखापट्टनम को भी अरब सागर में तैनात कर दिया गया है। ये पांचों 15(A) और 15(B) प्रोजेक्ट के तहत बनाए गए स्वदेशी जंगी जहाज़ है जिनमें किसी हवाई हमले से निबटने के लिए 70 किमी से ज्यादा दूरी तक मार करने वाली बराक मिसाइल के लिए 450 किमी तक ज़मीन या बड़े जंगी जहाज़ पर हमला करने वाली स्वदेशी ब्रह्मोस मिसाइलें तैनात हैं। इसमें एक मुख्य तोप के अलावा 4 छोटी तोपें लगी हैं जिनसे किसी भी नाव को पूरी तरह तबाह किया जा सकता है। डिस्ट्रॉयर्स के अलावा गश्त करने वाले जंगी जहाज़, मिसाइलों से हमला करने वाली मिसाइल बोट्स और ताक़तवर फ्रिगेट्स भी तैनात किए गए हैं। निगरानी के लिए टोही विमान P8(I) और प्रेडेटर ड्रोन तैनात किए गए हैं जो पूरे अरब सागर पर दिन-रात मंडरा रहे हैं और अपने बेस पर तस्वीरें भेज रहे हैं। सूत्रों के मुताबिक अगर हालात और बिगड़े तो नौसेना दूसरे जंगी जहाज़ों को भी अरब सागर भेजेगी। 

अरब सागर दुनिया के सबसे व्यस्त व्यापारिक मार्गों में से एक है। यहीं से लाल सागर के ज़रिए स्वेज़ नहर से होकर एशिया को यूरोप से जोड़ने वाला समुद्री मार्ग जाता है। लाल सागर में ईरान समर्थित हूती विद्रोहियों ने अक्टूबर से ही व्यापारिक जहाज़ों पर हमले शुरू कर दिए थे। दिसंबर में भारत आ रहे दो व्यापारिक जहाज़ों पर हमले के बाद भारतीय नौसेना को सतर्क कर दिया गया था। भारत की चिंता इस बात को लेकर है कि अगर इस समुद्री मार्ग पर व्यापारिक जहाज़ों पर हमले न रुके तो इन जहाज़ों को अफ्रीका होकर बहुत ज्यादा लंबे रास्ते से भारत आना पड़ेगा। इस रास्ते पर समय तो ज्यादा लगेगा ही माल की क़ीमत बहुत बढ़ जाएगी। भारत के लिए सबसे महत्वपूर्ण कच्चा तेल इसी रास्ते से आता है और अगर इसे नए रास्ते से लाना पड़ा तो इसकी क़ीमत बहुत बढ़ जाएगी। रूस ने 2021 में कच्चे तेल पर दी जाने वाली छूट को काफ़ी हद तक कम कर दिया है। ऐसे में अगर दूसरे देशों से आने वाला कच्चा तेल भी मंहगा हो गया तो देश में डीज़ल और पेट्रोल की क़ीमतें बढ़ेंगी जिसका व्यापक असर होगा। 


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